बाबासाहेब चाहते थे की हमारे लोग अनुयायी बने; भक्त नहीं. एक बार बाबासाहेब भाषण देकर कुर्सी पर बैठे थे और उनके बाजु में एक पत्रकार बैठे थे. बाबासाहेब पेपर पढने में गुंग थे, तभी हमारे लोग उनके पैर चछुने लगे. देखते ही देखते बड़ी लाइन लगी. पढने के बाद बाबासाहेब ने देखा की एक आदमी उनके पैर छु रहा है. तभी उन्होंने उसे अपनी काठी से जोर से मारा...वो चिल्लाते हुए भागा. बाजु के पत्रकार ने पूछा, "बाबासाहेब, यह लोग आपको देवता के सामान पूज रहे है और आपने उनको लाठी क्यों मारी?" तब बाबासाहेब बोले की, " मुझे भक्त नहीं अनुयायी लोग चाहिए".
"जयभीम" बोलनेवाले लोग भक्त है और "जय मूलनिवासी" बोलनेवाले लोग अनुयायी है. भक्त लोग अपने महापुरुष के विचारो की हत्या करते है और बामनो को काम आसान करते है. जयभीम बोलनेवालो ने बाबासाहेब को सिर्फ दलितों तक ही सिमित रखा और उनको दलितों का नेता बनाया...जो काम बामन लोग नहीं कर सकते थे, वो काम हमारे नासमाज़ लोगो ने आसानी से किया.
मै पूछना चाहता हूँ की, क्या आपके "जयभीम" चिल्लाने से बाबासाहेब महान बननेवाले है? अगर आप नहीं कहेंगे तो क्या बाबासाहेब क़ी महानत कम होनेवाली है?? क्या आपने IBN7 के CONTEST में मिस काल नहीं दोगे तो क्या बाबासाहेब की महानत कम होनेवाली है?? बिलकुल नहीं!! बामन लोग सिर्फ यह देखना चाहते थे क़ी, बामसेफ ने लोगो को होशियार तो बनाया है ; लेकिन देखते है क़ी और कितने बेवकूफ भक्त लोग बाकि है?!!
तथागत बुद्ध महान इसलिए बने क्योंकि उन्होंने CADRE-BASED भिक्खु संघ का निर्माण किया था; जो उनके सच्चे अनुयायी थे; भक्त नहीं! इसलिए, उन अनुयायी भिक्खुओ ने बुद्ध क़ी विचारधारा जन जन तक फैलाई और सारा भारत बुद्धमय बनाया. आज के भिक्खु भक्त बने हुए है, जो सिर्फ विहारों में पूजा करते है, विचारधारा का प्रचार नहीं करते . इसलिए, आज बौद्ध धर्म का भारत में प्रसार नहीं हो रहा है.
अगर हमे भी आंबेडकरवाद का प्रसार करना है, तो बाबासाहेब क़ी विचारधारा को समजना होगा, उनके जैसा क्रन्तिकारी बनना होगा. सिर्फ उनके भक्त बनकर और जयभीम क़ी रट लगाकर हम खुद को आंबेडकरवादी होने क़ी तसल्ली तो दे सकते है लेकिन बाबा का MISSION आगे नहीं बढा सकते.
जयभीम कहने से हम बाकि समाज से खुद को अलग करते है और बामनो का काम आसान करते है. जितना जादा अलग बनोगे उतना जादा पिटोगे. अगर जय मूलनिवासी कहोगे तो सारे जाती धर्मो को साथ लेकर चलोगे और बामन अकेला पड़ेगा. अर्थात, जय मूलनिवासी से आप मजबूत बनोगे और बामन कमजोर बनेगा.
क्या हमारे लिए बुद्ध, अशोका, शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज, संत तुकाराम, महात्मा फुले महान नहीं है? लेकिन इन सभी महापुरुषो का नाम एकसाथ लेंगे तो घंटा लगेगा. इसलिए आसान होगा "जय मूलनिवासी" कहना . क्योंकि हमारे सारे महापुरुष मूलनिवासी नागवंशी है और बामन विदेशी आर्यवंशी है.
अगर आप कहेंगे जयभीम तो बामन कहेगा "जय श्रीराम". अगर आप जय शिवराय या जय सेवालाल या जय कबीर भी कहेंगे तो भी बामन कहेगा "जय श्रीराम". क्योंकि, श्रीराम कोई और नहीं; बल्कि वो पुष्यमित्र शुंग बामन है, जिसने भारत में प्रतिक्रांति किया और उसके तहत हमारे महा पुरुषो क़ी हत्या हुई.
अगर आप "जय मूलनिवासी" कहेंगे, तो बामन का जय श्रीराम कहना बंद होगा. क्योंकि, "जय मूलनिवासी" के बदले बामन को "जय विदेशी" कहना होगा. बामन जनता है क़ी वो विदेशी है, लेकिन वो खुद को " विदेशी" बताने से 5000 सालो से बचता आ रहा है. लेकिन जय मूलनिवासी कहने से वो नंगा होगा; अकेला पड़ेगा और मार खायेगा. जितना मार खायेगा, उतना वो हमे हमारे छीने हुए हक़ अधिकार वापिस देगा. मतलब यह हमारे आज़ादी का रास्ता है ...इसलिए कहो "जय मूलनिवासी, भगाओ बामन विदेशी".
"जयभीम" बोलनेवाले लोग भक्त है और "जय मूलनिवासी" बोलनेवाले लोग अनुयायी है. भक्त लोग अपने महापुरुष के विचारो की हत्या करते है और बामनो को काम आसान करते है. जयभीम बोलनेवालो ने बाबासाहेब को सिर्फ दलितों तक ही सिमित रखा और उनको दलितों का नेता बनाया...जो काम बामन लोग नहीं कर सकते थे, वो काम हमारे नासमाज़ लोगो ने आसानी से किया.
मै पूछना चाहता हूँ की, क्या आपके "जयभीम" चिल्लाने से बाबासाहेब महान बननेवाले है? अगर आप नहीं कहेंगे तो क्या बाबासाहेब क़ी महानत कम होनेवाली है?? क्या आपने IBN7 के CONTEST में मिस काल नहीं दोगे तो क्या बाबासाहेब की महानत कम होनेवाली है?? बिलकुल नहीं!! बामन लोग सिर्फ यह देखना चाहते थे क़ी, बामसेफ ने लोगो को होशियार तो बनाया है ; लेकिन देखते है क़ी और कितने बेवकूफ भक्त लोग बाकि है?!!
तथागत बुद्ध महान इसलिए बने क्योंकि उन्होंने CADRE-BASED भिक्खु संघ का निर्माण किया था; जो उनके सच्चे अनुयायी थे; भक्त नहीं! इसलिए, उन अनुयायी भिक्खुओ ने बुद्ध क़ी विचारधारा जन जन तक फैलाई और सारा भारत बुद्धमय बनाया. आज के भिक्खु भक्त बने हुए है, जो सिर्फ विहारों में पूजा करते है, विचारधारा का प्रचार नहीं करते . इसलिए, आज बौद्ध धर्म का भारत में प्रसार नहीं हो रहा है.
अगर हमे भी आंबेडकरवाद का प्रसार करना है, तो बाबासाहेब क़ी विचारधारा को समजना होगा, उनके जैसा क्रन्तिकारी बनना होगा. सिर्फ उनके भक्त बनकर और जयभीम क़ी रट लगाकर हम खुद को आंबेडकरवादी होने क़ी तसल्ली तो दे सकते है लेकिन बाबा का MISSION आगे नहीं बढा सकते.
जयभीम कहने से हम बाकि समाज से खुद को अलग करते है और बामनो का काम आसान करते है. जितना जादा अलग बनोगे उतना जादा पिटोगे. अगर जय मूलनिवासी कहोगे तो सारे जाती धर्मो को साथ लेकर चलोगे और बामन अकेला पड़ेगा. अर्थात, जय मूलनिवासी से आप मजबूत बनोगे और बामन कमजोर बनेगा.
क्या हमारे लिए बुद्ध, अशोका, शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज, संत तुकाराम, महात्मा फुले महान नहीं है? लेकिन इन सभी महापुरुषो का नाम एकसाथ लेंगे तो घंटा लगेगा. इसलिए आसान होगा "जय मूलनिवासी" कहना . क्योंकि हमारे सारे महापुरुष मूलनिवासी नागवंशी है और बामन विदेशी आर्यवंशी है.
अगर आप कहेंगे जयभीम तो बामन कहेगा "जय श्रीराम". अगर आप जय शिवराय या जय सेवालाल या जय कबीर भी कहेंगे तो भी बामन कहेगा "जय श्रीराम". क्योंकि, श्रीराम कोई और नहीं; बल्कि वो पुष्यमित्र शुंग बामन है, जिसने भारत में प्रतिक्रांति किया और उसके तहत हमारे महा पुरुषो क़ी हत्या हुई.
अगर आप "जय मूलनिवासी" कहेंगे, तो बामन का जय श्रीराम कहना बंद होगा. क्योंकि, "जय मूलनिवासी" के बदले बामन को "जय विदेशी" कहना होगा. बामन जनता है क़ी वो विदेशी है, लेकिन वो खुद को " विदेशी" बताने से 5000 सालो से बचता आ रहा है. लेकिन जय मूलनिवासी कहने से वो नंगा होगा; अकेला पड़ेगा और मार खायेगा. जितना मार खायेगा, उतना वो हमे हमारे छीने हुए हक़ अधिकार वापिस देगा. मतलब यह हमारे आज़ादी का रास्ता है ...इसलिए कहो "जय मूलनिवासी, भगाओ बामन विदेशी".
'आर्य' विदेशी है, तो 'नाग' मूलनिवासी कैसे?
उत्तर द्याहटवाडॉ. भीमराब आंबेडकर अर्थात बाबासाहेब अपने ऐस्तिहसिक ग्रन्थ में लिखते है, “लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का मत है कि, आर्य उत्तर ध्रुव के पास से आर्कटिक देश से आए है. (Artikc Home in the Vedas, by B.G. Tilak, Page-58, 60). यह मत भी कुछ ठीक नही जंचता, क्योंकि वेदों में और आर्यों के जीवन में ‘अश्व’ का विशेष स्थान है. तो क्या घोड़े (अश्व) भी उत्तर ध्रुव के पास पाए जाते थे? (Who Were The Shudras? - 1946, शुद्रो की खोज, अनुवादक- भदंत आनंद कौसल्यायन, समता प्रकाशन, नागपुर, प्र- १९९४, पृष्ट- २९)
दिनांक- २५/११/१९५६, काशी के हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रांगन में, जो भाषण डा. बाबासाहब आंबेडकर ने किया था, “जिन नाग लोगों ने आर्यों के पहले भारत में बस्ती की थी, वे आर्यों से ज्यादा सुसंकृत थे. उन्हें आर्यों ने जीता, पर इसलिए ही उनकी संस्कृति महान नही होती. आर्यों के विजय का कारण यही था की उनके पास घोड़े (अश्व) थे. आर्य घोड़ों पर सवार होकर लड़ते थे, तो नाग पैदल.” इस भाषण में बाबासाहब आंबेडकर ने नागों को सिर्फ “पहले के” कहा है, पर ‘विदेशी’ नही और न ‘देशी’ या ‘मुलनिवाशी’. आर्य किस देश से आए थे, जिस देश में घोड़े पाए जाते थे? बाबासाहब आंबेडकर के मतानुसार अगर आर्य विदेशी लोग है तो घोडा भी देशी जानवर नही है.
प्राचीन काल में घोड़ों को जिस देश में भी सबसे पहले पालतू जानवर बनाया गया था, उस देश का नाम क्या है? इसे जबतक साबित नही किया जाता, तबतक आर्यों का मूलस्थान साबित नही हो सकता. आर्य विदेशी या देशी भी हो सकते. आज देश की जो सीमाए है, यही सीमाए प्राचीन समय मे भी थी, ऐसे कैसे कह सकते? आज जनतंत्र है, उस समय राजतन्त्र हुआ करता था. आज के भारतीय सीमाओ के अन्दर कही छोटे-छोटे राजा राज्य करते थे. एक राज्य के शिमाओ को एक देश की सीमाए समझी जाती थी. किन-किन राजाओं के राज्यों को भारतीय सीमा के अंतर्गत गिना जाना चाहिए और किसे नहीं? अगर "आर्य" विदेशी है तो “नाग” भी मुलनिवाशी कैसे?