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रविवार, १२ ऑगस्ट, २०१२

"जय मूलनिवासी, भगाओ बामन विदेशी"

बाबासाहेब चाहते थे की हमारे लोग अनुयायी बने; भक्त नहीं. एक बार बाबासाहेब भाषण देकर कुर्सी पर बैठे थे और उनके बाजु में एक पत्रकार बैठे थे. बाबासाहेब पेपर पढने में गुंग थे, तभी हमारे लोग उनके पैर चछुने लगे. देखते ही देखते बड़ी लाइन लगी. पढने के बाद बाबासाहेब ने देखा की एक आदमी उनके पैर छु रहा है. तभी उन्होंने उसे अपनी काठी से जोर से मारा...वो चिल्लाते हुए भागा. बाजु के पत्रकार ने पूछा, "बाबासाहेब, यह लोग आपको देवता के सामान पूज रहे है और आपने उनको लाठी क्यों मारी?" तब बाबासाहेब बोले की, " मुझे भक्त नहीं अनुयायी लोग चाहिए".

"जयभीम" बोलनेवाले लोग भक्त है और "जय मूलनिवासी" बोलनेवाले लोग अनुयायी है. भक्त लोग अपने महापुरुष के विचारो की हत्या करते है और बामनो को काम आसान करते है. जयभीम बोलनेवालो ने बाबासाहेब को सिर्फ दलितों तक ही सिमित रखा और उनको दलितों का नेता बनाया...जो काम बामन लोग नहीं कर सकते थे, वो काम हमारे नासमाज़ लोगो ने आसानी से किया.

मै पूछना चाहता हूँ की, क्या आपके "जयभीम" चिल्लाने से बाबासाहेब महान बननेवाले है? अगर आप नहीं कहेंगे तो क्या बाबासाहेब क़ी महानत कम होनेवाली है?? क्या आपने IBN7 के CONTEST में मिस काल नहीं दोगे तो क्या बाबासाहेब की महानत कम होनेवाली है?? बिलकुल नहीं!! बामन लोग सिर्फ यह देखना चाहते थे क़ी, बामसेफ ने लोगो को होशियार तो बनाया है ; लेकिन देखते है क़ी और कितने बेवकूफ भक्त लोग बाकि है?!!

तथागत बुद्ध महान इसलिए बने क्योंकि उन्होंने CADRE-BASED भिक्खु संघ का निर्माण किया था; जो उनके सच्चे अनुयायी थे; भक्त नहीं! इसलिए, उन अनुयायी भिक्खुओ ने बुद्ध क़ी विचारधारा जन जन तक फैलाई और सारा भारत बुद्धमय बनाया. आज के भिक्खु भक्त बने हुए है, जो सिर्फ विहारों में पूजा करते है, विचारधारा का प्रचार नहीं करते . इसलिए, आज बौद्ध धर्म का भारत में प्रसार नहीं हो रहा है.

अगर हमे भी आंबेडकरवाद का प्रसार करना है, तो बाबासाहेब क़ी विचारधारा को समजना होगा, उनके जैसा क्रन्तिकारी बनना होगा. सिर्फ उनके भक्त बनकर और जयभीम क़ी रट लगाकर हम खुद को आंबेडकरवादी होने क़ी तसल्ली तो दे सकते है लेकिन बाबा का MISSION आगे नहीं बढा सकते.

जयभीम कहने से हम बाकि समाज से खुद को अलग करते है और बामनो का काम आसान करते है. जितना जादा अलग बनोगे उतना जादा पिटोगे. अगर जय मूलनिवासी कहोगे तो सारे जाती धर्मो को साथ लेकर चलोगे और बामन अकेला पड़ेगा. अर्थात, जय मूलनिवासी से आप मजबूत बनोगे और बामन कमजोर बनेगा.

क्या हमारे लिए बुद्ध, अशोका, शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज, संत तुकाराम, महात्मा फुले महान नहीं है? लेकिन इन सभी महापुरुषो का नाम एकसाथ लेंगे तो घंटा लगेगा. इसलिए आसान होगा "जय मूलनिवासी" कहना . क्योंकि हमारे सारे महापुरुष मूलनिवासी नागवंशी है और बामन विदेशी आर्यवंशी है. 

अगर आप कहेंगे जयभीम तो बामन कहेगा "जय श्रीराम". अगर आप जय शिवराय या जय सेवालाल या जय कबीर भी कहेंगे तो भी बामन कहेगा "जय श्रीराम". क्योंकि, श्रीराम कोई और नहीं; बल्कि वो पुष्यमित्र शुंग बामन है, जिसने भारत में प्रतिक्रांति किया और उसके तहत हमारे महा पुरुषो क़ी हत्या हुई.

अगर आप "जय मूलनिवासी" कहेंगे, तो बामन का जय श्रीराम कहना बंद होगा. क्योंकि, "जय मूलनिवासी" के बदले बामन को "जय विदेशी" कहना होगा. बामन जनता है क़ी वो विदेशी है, लेकिन वो खुद को " विदेशी" बताने से 5000 सालो से बचता आ रहा है. लेकिन जय मूलनिवासी कहने से वो नंगा होगा; अकेला पड़ेगा और मार खायेगा. जितना मार खायेगा, उतना वो हमे हमारे छीने हुए हक़ अधिकार वापिस देगा. मतलब यह हमारे आज़ादी का रास्ता है ...इसलिए कहो "जय मूलनिवासी, भगाओ बामन विदेशी".

शुक्रवार, १० ऑगस्ट, २०१२

श्रीकृष्ण



      कृष्ण असुर था और बामनो का कट्टर दुश्मन था . इसलिए बामन लोग कृष्ण की नफरत करते थे . इसी नफरत के चलते बामनो ने महाभारत और गीता लिखी . "महाभारत" के माध्यम से बामनो ने "कृष्ण को बदनाम" किया और "गीता" के माध्यम से बामनो ने "कृष्ण का बामनीकरन" किया . महाभारत में बामनो ने कृष्ण को बदफैली और अय्याशी दिखाया ; उसको गोपियों के पीछे लगनेवाला और महिलाओ को छेड़ने वाला मजनू दिखाया , उसकी 16000 बिबिया दिखाई. यह सब इसलिए बामनो ने लिखा , ताकि कृष्ण का मजाक उड़ाया जा सके .
       कृष्ण पक्का बामन विरोधी था , लेकिन गीता के माध्यम से बामनो ने उसे बामनवादी दिखाया और कृष्ण को माध्यम बनाकर भारत में बामनवाद को मजबूत किया . OBC लोग जो कृष्ण को मानते है , वोह लोग बामनो के गुलाम है , क्योंकि बामनो ने उनको कृष्ण के माध्यम से गुलाम बनाया है . अगर उन्हें बामनो की गुलामी से आजाद करना है , तो पहले हमे कृष्ण को बामनो की कैद से आजाद करना होगा .
       कृष्ण को बामनो की कैद में बंदिस्त करनेवाले " महाभारत और गीता " यह दो ग्रन्थ है . इन् दो ग्रंथो के माध्यम से बामनो ने कृष्ण का चारित्र्य हनन किया है. जब तक कृष्ण को मानने वाले लोग इन् दो ग्रंथो का कड़ा विरोध नहीं करते , और बामनो के चंगुल से कृष्ण को आजाद नहीं करते . तबतक कृष्ण के साथ न्याय नहीं होगा . सिर्फ बामनो के इशारो पर कृष्ण जन्मास्टमी को नाचना केवल मुर्खता होगी ; और कुछ नहीं .
       श्री कृष्ण मूलनिवासी थे और विदेशी बामनो के कट्टर विरोधी थे . बामनो की विषमता को नस्त्त करने के लिए उन्होंने "गोपाल काला " का प्रयोजन शुरू किया था . गोपाल काला में सभी जाती और वर्णों के लोग आपसी भेद भुलाकर एकसाथ खाना खाते थे .यह आपसी भाईचारा बढाने का और बामन वाद को कम करने का श्री कृष्ण का एक प्रयास था .
      बामन लोग मूलनिवासी बहुजन लोगो को कमजोर करने के लिए उनकी गाये काटकर खाते थे . उस ज़माने में जानवर ही सबसे बड़ी संपत्ति थी और बामन उसी सम्पति को यज्ञ के नाम पर तबाह करते थे . इसलिए कृष्ण ने गाय को और दूध दही को महत्व दिया था .इसलिए गाय को हमेशा कृष्ण के साथ दिखाते है और कृष्ण को हमेशा दही पिटे दिखाते है .
      बामन लोग मूलनिवासी लोगो पर बहुत अत्याचार करते थे . बामनो के सेनापति को "इन्द्र" कहते थे . इन्द्र हर साल मूलनिवासी बहुजनो से खंडनी वसूल करता था और सभी बामनो में बांटता था ....उस खंडनी को " नैवेद्य " कहते थे . अगर मूलनिवासी कितना भी गरीब क्यों हो , कभी कभी उसे अपनी जमींन , घर या खुद की बेटी भी बेचनी पड़ती थी ; लेकिन "नैवेद्य " देना जरुरी था . नहीं तो बामन इन्द्र उसको तडपा कर मारते थे . श्रीकृष्ण ने मूलनिवासीयो के इस शोषण का कडा विरोध किया था . उन्होंने इन्द्र को जानेवाला नैवेद्य को रोक दिया और अपने मूलनिवासी समाज में ही उसको बाँटना शुरू किया . इससे गुस्सा होकर इन्द्र ने कृष्ण पर हमला किया , लेकिन कृष्ण ने मूलनिवासी यो की मदत से बामन इन्द्र को हरा दिया . इन्द्र और कृष्ण के बीच की लड़ाई को बामनो ने कालपनिक रूप में इस तरह पेश किया है ---इन्द्र ने कृष्ण और उनके साथियों पर बारिश को बौछार की, लेकिन कृष्ण और उनके साथियों ने उंगली पर पर्वत उठाकर बामनो का सामना किया और उनको पराजित किया .
      इस कहानी का अर्थ यह है की , कृष्ण ने सभी मूलनिवासी यो को इक्कट्ठा किया और बामनो से लड़ाई की . उन्होंने ने उंगली पर पर्वत उठा लिया , इसका मतलब यह है की, बामनो को पराजित करने के लिए सिर्फ उंगली भर की ताकत ही काफी है . अगर सारे मूलनिवासी सिर्फ अपनी उंगली भर की ताकत का ही इस्तेमाल करते है , तो हम विदेशी बामनो को आसानी से हरा सकते है . यह मेसेज कृष्ण ने हमको दिया है . तो सभी मूलनिवासी बहुजन लोग श्री कृष्ण का अनुसरण करने के लिए "बामसेफ और भारत मुक्ति मोर्चा" में शामिल हो जाओ ....हमारे महापुरुष कृष्ण ने जैसे विदेशी बामनो को हरा दिया था , वैसे ही हम भी बामनो को हरा देंगे और हमारे देश से उन्हें भगा देंगे ....जय मूलनिवासी , भागो बामन विदेशी !!!

शुक्रवार, २९ जून, २०१२

'आपण सगळे ब्राह्मण' की 'आपण सगळे घाबरट'!

आपण सगळे ब्राह्मण या ग्रुपचा लोगो.
हाच लोगो ब्राह्मण महासभेनेही स्वीकारला आहे.
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ब्राह्मणांतर्फे अत्यंत गुप्त पद्धतीने चालविण्यात येत असलेल्या +आपण सगळे ब्राह्मण+ या फेसबुक ग्रुपवरील लोकांनी अनिता पाटील या नावाचा धसका घेतला आहे. या ग्रुपवर अनिता पाटील यांच्या विषयी कोणतीही पोस्ट टाकायची नाही, असा नियमच या लोकांनी करून ठेवला आहे. या नियमाचे उल्लंघन करणारावर अ‍ॅडमीनकडून हकालपट्टीची कारवाई केली जाते. +आपण सगळे ब्राह्मण+ या ग्रुपविषयीची माहिती +अबाऊट+ या सदराखाली देण्यात आली आहे. ग्रुपची माहिती १) ग्रुप कशासाठी? आणि २) कशासाठी नाही? अशा दोन पोटमथळ्यांत समाविष्ट करण्यात आली आहे. +कशासाठी नाही+ या पहिल्याच मुद्यात अनिता पाटील यांनी लिहिलेल्या कोणत्याही लेखावर प्रतिक्रिया देऊ नये असे सदस्यांना बजावण्यात आले आहे. 

यांना पाण्यातही अनिता पाटील दिसते का?
अनिता पाटील यांचा 'अ' सुद्धा उच्चारायचा नाही, असा फतवा काढल्यानंतरही या ग्रुपमधील सदस्य अनिता पाटील ब्लॉगवरील लेखांवर टीका टिप्पणी करणयाचे सोडायला तयार नव्हते. त्यानंतर ग्रुपच्या अ‍ॅडमीनने सक्त ताकिद देणारे दुसरे कलम या सदरात घातले. +अनेक वेळा विनंती करूनही सभासद लव्ह जिहाद, अनिता पाटील, संभाजी ब्रिगेड ... (इ. अनेक विषयांची यादी येथे आहे) वर प्रतिक्रिया टाकीतच आहेत. त्यामुळे आता या विषयावर सक्त बंदी घालण्यात आली आहे.+ अशा आशयाची सक्त सूचना या कलमात टाकण्यात आली आहे. औरंगजेबाच्या सैनिकांनी संताजी आणि धनाजी यांचा एवढा धसका घेतला होता, की त्यांच्या घोड्यांनाही पाण्यात संताजी-धनाजी दिसत असत. आपण सगळे ब्राह्मण या ग्रुपवरील ब्राह्मणांची अवस्था अगदी अशीच झाली आहे. त्यांना सकाळी संध्येनंतर आचमन करायला घेतलेल्या पाण्यातही बहुधा अनिता पाटील हा ब्लॉग दिसत असावा. अनिता पाटील असे शब्द कानी पडताच ब्राह्मणवाद्यांच्या पोटात भीतीचा गोळा उठतो. याचे कारण अगदी साधे आहे. अनिता पाटील ब्लॉगवर जे सत्य मांडण्यात आले आहे, त्याचा प्रतिवाद होऊ शकत नाही. कारण ब्लॉगवरील प्रत्येक वाक्याला ब्राह्मणी ग्रंथांतील भक्कम पुरावा जोडण्यात आला आहे. त्यामुळे त्यांची भीतीने गाळण उडाली आहे. ग्रुपवर मात्र हे लोक शूरवीरतेचा आव आणत असतात. या परिस्थितीत एवढेच सांगावेसे वाटते की, +आपण सगळे ब्राह्मण+ हे नाव या ग्रुपला अजिबात शोभत नाही. +आपण सगळे घाबरट+ असे नाव ग्रुपला द्यायला हवे. ते अधिक शोभून दिसेल. 
+आपण सगळे ब्राह्मण+ या फेसबुक ग्रुपवर अ‍ॅडमीनने टाकलेले सर्व नियम खाली जसेच्या तसे :  


मित्र हो, बऱ्याच वेळेस हे विचारले गेले कि ह्या ग्रुप कश्यासाठी सुरु केला आहे, उद्दिष्ट आहे काय? नक्की काय करणार?
ह्याचे स्पष्टीकरण अनेक वेळा दिले गेले होते पण ति माहिती विखुरलेल्या स्वरूपात होती. म्हणून एकाच ठिकाणी सलग्न अशी देण्याचा प्रयत्न करतो आहोत. सूचना, दुरुस्ती व मार्गदर्शन ह्याचे स्वागतच असेल.
सुरुवातीला एक कबुली देणे गरजेचे आहे. मराठी टाईप करताना चूक झाली कि "आपण सगळे ब्राह्मण" ऐवजी " आपण सगळे ब्राम्हण" झाले. हे टाईप करताना काही मर्यादा होत्या, नजरेतून हि गोष्ट निसटली व नंतर 200 पेक्षा ज्यास्त सभासद झाल्याने ति चूक दुरुस्त करणे अशक्य झाले. त्याबाबत असंख्य वेळेस क्षमायाचना ही करून झाले. तरी सर्व सभासदांना नम्र विनंती कि झालेल्या ह्या चूकीची परत परत ग्रुप मध्ये चर्चा करू नये.
ग्रुप कशासाठी?
१) जे आपले बांधव व्यवसाय करतात त्यांना एकमेकांची मदत होवून व्यवसाय ही वाढेल व प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष आपल्याच बांधवांचा फायदा होईल. म्हणजे आपल्याला काही गोष्टींची, सेवेची आवशक्यता असेल, तर सर्व प्रथम आपल्यातलेच ही गरज भागवू शकणारे शोधणे. त्यासाठी सभासद आपल्या व्यवसायाची माहिती, जाहिरात करू शकतात. ज्यांना एखादी सेवा, खरेदी व मार्ग दर्शन हवे असेल तर ते इथे विनंती करू शकतात. जे सभासद ह्यातले जाणकार आहेत ते मदत करतील. जी मदत विनामूल्य करणे शक्य आहे ति केली जाईल. व जी मोबदला शिवाय करता येणार नाही ते सेवा देणारे व घेणारे मग एकमेकांच्या संपर्क व संवादाने ठरवतील. नवीन जे व्यवसायात प्रयत्न करू इच्छित असतील त्यांना नव्या नव्या संधीची माहिती मिळेल.


२) दुसरी गोष्ट म्हणजे नोकरीच्या संधी व त्यांची माहिती. आपले बरेच बांधव शासकीय, निमशासकीय, सहकारी, खाजगी व बड्या उद्योग समुहात निर्णय घेण्याचे अधिकार असलेल्या जागी काम करतात. त्यांनी त्यांना माहित असेलेल्या उपलब्ध संधींची माहिती इथे देणे म्हणजे आपल्यातील सभासदांना त्याचा फायदा होईल. बेरोजगार किंवा नोकरी बदलण्यासाठी जे प्रयत्न करतात त्यांना मदत होईल. नोकरी शोधणारे ही आपली माहिती देवू शकतील.

३) संवादातून विचारांचे आदान-प्रदान होईल, कलाकार, होशी कलाकार, वेगळ्या छंद जोपासणारे, काही हटके केलेले, काही आपल्या वेगळीच कला जोपासणारे ह्यांची माहिती सर्वांना होईल, त्याना व्यासपीठ मिळेल, कौतुकही होईल व एकादी चांगली संधी हे उपलब्ध होईल.

४) आपल्या समाजातील गरजवंत आहेत त्यांना शक्य असेल तेवढी मदत करणे. बऱ्याच भागात विशेष करून ग्रामीण भागात मुलींच्या शिक्षणा विषयी अनास्था दाखवली जाते. मग आर्थिक परस्थिती नाजूक असल्याचे कारण असते, मग कसेतरी करून लग्न करून दिले म्हणजे पालकांची जबाबदारी संपली. दुसरा हाही समज असा कि शिकून काय करणार, चूल व मुल ही सांभाळणे आहे. तसेच काही मुलांच्याही बाबतीत होते. शिक्षणात विशेष प्रगती नसेल कि लागलीच शिक्षण बंद केले जाते मग मिळेल त्या कामाला लावले जाते. शिक्षण नसल्याने मिळणारे काम हे अश्या तश्याच स्वरूपाचे असते. मग सोबत हे तशीच. हळू हळू व्यसने, बेफिकीरपणा, नको त्या मार्गाला जातात. मग पुढचे सगळेच बारगळते. म्हणतात कि घरातला एक जण शिकला कि पूर्ण घर सुधारते. हेच इथे होत नाही. अश्या गरजवंत विद्यार्थी शोधणे व त्यांना योग्य ति मदत करणे.

५) आता सर्वात महत्वाचा मुद्दा हा कि आर्थिक मदत कशी उभा करायची? त्यासाठी काही जेष्ठ व सन्मानीय सदस्यांशी चर्चा चालू आहे. एकादी एनजिओ सारखी संस्था स्थापन करणे, ज्यामुळे दानशूर व्यक्तीकडून देणगी स्विकारू शकू व योग्य त्या प्रकारे वापरता येईल. त्यासाठी राष्ट्रीयकृत बँकेत एक खाते उघडावे म्हणजे इच्छुक तिथे आपली मदत जमा करतील. जशी जशी प्रगती होत जाईल, त्याची सविस्तर माहिती प्रसारित केली जाईलच.
सध्या तरी कार्यक्षेत्र मर्यादितच ठेवणे. नंतर अनेक गोष्टी करणे आहे पण सगळ्याच गोष्टी एकच वेळेस करण्याचा विचार केला कि मग एकही काम पूर्ण समर्कतेने करणे शक्य आहोत नाही.

कश्यासाठी नाही?
१) सध्या बऱ्याच ठिकाणी आपल्या समाजाविषयी, आपल्या पूर्वजाविषयी चुकीचा प्रचार केला जातो. ज्यांना झोपेचे सोंग घेवून असे प्रकार करावयाचे आहेत ते खुशाल करोत. त्याना आपण त्यांच्या पातळीवर जावून उत्तरे देवू शकत नाही कारण आपण आपली पातळी सोडणे म्हणजे एक प्रकारे त्यांच्या प्रयत्नांना यशस्वी करण्यात हातभार लावण्या सारखे आहे, आता राहिला अनिता पाटील चा विषय, इथे एक गोष्ट सांगावीशी वाटते कि ति हे सगळे का करत असावी? तिला आपल्याला दुखवायचे आहे व आपण दुखावले गेलो किंवा तिच्या पातळीवर जावून बोलत राहिलो तर तिला अपेक्षित अशीच प्रतिक्रिया देण्यासारखे नाही का? कुत्रा आपल्याला चावला म्हणून आपण कुत्र्याला चावतो का? म्हणून अश्या पोस्ट मग त्या A ते Z ह्यातल्या कोणत्याही ग्रेड च्या लोकांनी केलेल्या असो वा त्याला प्रतिक्रिया देणे असो ह्या पैकी कोणताच प्रकार इथे होणार नाही.

२) अनेक वेळा विनंती करून ही सभासद वारंवार लव्ह जिहाद, अनिता पाटील, मांसाहार, दारू, ब्राह्मणाच्या मुलींचा आंतरजातीय विवाह, संभाजी ब्रिगेड, आपल्याच मुली कश्या चुकतात?, खरे ब्राह्मण असला तर असे कराल, तसे कराल ह्या सगळ्याना मनाई आहे सद्या, पूर्वी नव्हती पण अतिरेक झाला ह्या सगळ्या गोष्टींचा म्हणून आता बंदी आहे. कृपया इथे लक्षात घेणे असे आहे कि नाण्याला दुसरी बाजू असते. एकांगी विचार व पोस्ट स्वीकारल्या जाणार नाहीत. ह्या वर बरेच सभासद विचारतात हे खरे नाही का? आपण आपल्या मुलीना सावध करू नये का? मला वाटते आजकाल इतरही मार्गाने त्यांना त्याची माहिती असते व त्याबाबत आपण काही सार्वजनिक रित्या बोलणे म्हणजे त्यांच्या वैयक्तिक आयुष्यात ढवळा ढवळ करणे आहे ज्याचा आपल्याला काही एक अधिकार नाही.

३) ग्रुपवर निखळ विनोद, कविता, सुविचार, शायरी व छोटे छोटे संदेश जे बहुतेक मोबाईल वरून पोस्ट केले जातात. त्याना मनाई नाही पण त्याचेच गर्दी ज्यास्त होते व मग महत्वाच्या पोस्ट पडद्यामागे जातात किवा मागे पडतात. ह्याबाबत अडमीन वेळोवेळी व योग्य ती भूमिका घेतीलच, त्याबाबत चर्चा किवा वाद होणे नाही, त्यात अडमीन ह्यांचा निर्णय अंतिम असेल.


४) कोणतेही पोस्ट, लेखन, उतारे व छायाचित्रे ग्रुपवर टाकताना एक लक्षात घेणे कि इथे सर्व वयाची, पुरुष व महिला सभासद आहेत. त्यांच्या भावना दुखावल्या जावू नयेत वा वेगळा अर्थ अभिप्रेत होईल अश्या पोस्ट स्वीकारल्या जाणार नाहीत. कोणी पोस्ट केल्यातर लागलीच काढून टाकण्यात येतील. त्याबाबतही अड्मीन ह्यांचा निर्णय हा अंतिम राहिला.


अनिता पाटील

सोमवार, १९ डिसेंबर, २०११

कशाला हि बामनशाही…………………रे!


(ए मित्रांनो, मी एक गाण म्हणतो, चांगल गाण……बहुजनांच गाण….)
कशाला हि बामनशाही बामनशाही बामनशाही रे (३)
कशाला हि बामनशाही................रे
आर्य आल भारतात, चालू झाला ह्यो संघर्ष.
परदेशी हे आर्य, आर्य हेच बामन.
कशाला  हि  बामन  शाही  बामन शाही  बामन शाही  रे  ()
बामन चमडी पांढर पांढर, त्याचं मन काळ.
मनुवाद आमच्यावर लादून लादून, केल अंधारी जीवन.
कशाला  हि  बामन शाही  बामन शाही  बामन शाही   रे  ()
अ…खोट्या गोष्टी…(होय खोट्याच)

अ…खोट्या गोष्टी – सांगून करतंय – देशावर राज्य.

भारत देश महानं, बामन आलं, केलं देशाचं वाटूळं
मुळ धर्म – आमचा धर्म – आम्हीच इथ शुद्र.

जाव जाव -  बामनहो जाव – दुसरा नाही पर्याय.

बहुजन मारत्यात फुकट, बामन कशी खुश.

हे गाण बहुजन तरुणाच, आता पाहिजे स्वातंत्र्य.

कशाला  हि  बामन शाही  बामन शाही  बामन शाही  रे  ()
 (सूचना:- हे गाण 'why this Kolavari' च्या तालावर म्हणावे व प्रतिक्रिया कळवाव्यात, आणि सर्व मित्रांमध्ये प्रसार करावा.) जय जिजाऊ – जय शिवराय.  
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